शुक्रवार, 5 मार्च 2010

कवि कोकिल विद्यापति






गौरा तोर अंगना।
बर अजगुत देखल तोर अंगना।

एक दिस बाघ सिंह करे हुलना ।
दोसर बरद छैन्ह सेहो बौना।।
हे गौरा तोर ................... ।

पैंच उधार माँगे गेलौं अंगना ।
सम्पति मध्य देखल भांग घोटना ।।
हे गौरा तोर ................ ।

खेती न पथारि शिव गुजर कोना ।
मंगनी के आस छैन्ह बरसों दिना ।।
हे गौरा तोर ............... ।




कार्तिक गणपति दुई चेंगना।
एक चढथि मोर एक मुसना।।
हे गौर तोर ............ ।

भनहि विद्यापति सुनु उगना ।
दरिद्र हरण करू धइल सरना ।।

1 टिप्पणी:

  1. जी महोदय अपने लोकनिक प्रयास के हम आ हमर परिजन समर्थन करैत छैथि !

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