बुधवार, 10 मार्च 2010

भूलल विसरल विद्यापतिक गीत

कुञ्ज भवन स निकसल रे रोकल गिरधारी .
एकही नगर बसु मादव हे जनि करू बटमारी .
छोडू कनहैया मोर आँचर रे फाटत नब साडी
अपजस होयत जगत भरी हे जनि करिय उघारी .

संग सखी अगुआइल रे हम एकसरी नारी
दामिनी आय तुलामती हे एक राती अन्हारी
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनी गुनमति नारी
हरिक संग कछु डर नहीं हे तोहे परम गमारी ..
( २ )

के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास।

हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल सावन मास।।

एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय।

सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय।।

मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल।

गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल।।

विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन आस ।

आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास।।





(३)

चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी।

सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी।।

एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पथ  हरेधि मुरारी।

हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी।।

जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे।

चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह।।

कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।

आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी।।

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