रविवार, 7 मार्च 2010

मिथिलाक वंदना


जय जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया.
सहज सुमति वर दिअओ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया .
वासर रैनि सवासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूड़ा.
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कैल कूड़ा.
सामर वरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुल कोका.
कट-कट विकट ओठ फुट पांड़रि
लिधुर फेन उठ फौका.
घन घन घनन नुपूर कत बाजय
हन हन कर तुअ काता.
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र विसरु जनि माता.

2 टिप्‍पणियां:

  1. ई भगवती गीत सुनि मोन हर्षित भ गेल । आहाँक बहुत बहुत धन्यवाद ई गीत के लेल । आहाँक ब्लाग बहुत नीक लागल । आशा अछि कि नीक नीक लेख आ कविता आ गीत इत्यादि पढ़ैक भेंटत । शुभकामना


    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दियौ, टिप्पणी करै में सुविधा होऐत छै ।

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  2. wah!!! mithila ke e sundar gaan sun ka man bahut prafullit bhel... aahan k bahut bahut dhanyavaad...
    Rahul

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